संजय सिंह fakirpura
Tragedy
दूरियों का दरिया
बड़ा दर्दनाक होता है
दूरियां इंसान के लिए
श्राप है
अभिमान
दूरियां
वीरता
फिर भी जाने किस लिए नहीं भाती है बेटियां फिर भी जाने किस लिए नहीं भाती है बेटियां
बरसात पर टिकी है तमाम लोगों के सपनों की उड़ान। बरसात पर टिकी है तमाम लोगों के सपनों की उड़ान।
क्योंकि उग आयी झुर्रियां दिल कहता है अब बस ! क्योंकि उग आयी झुर्रियां दिल कहता है अब बस !
एक दिन हुस्न और इश्क में गजब ठन गई उस दिन की वो मुलाकात आखिरी बन गई ! एक दिन हुस्न और इश्क में गजब ठन गई उस दिन की वो मुलाकात आखिरी बन गई !
सुरक्षित रखी थी मैंने शीशे में बंद डायरी सुरक्षित रखी थी मैंने शीशे में बंद डायरी
हो यूँ यादों से ख़ुशियाँ चुराया ना करो…….., हो यूँ यादों से ख़ुशियाँ चुराया ना करो……..,
देश और समाज से गायब हो रही निर्भीकता की परिपाटी। देश और समाज से गायब हो रही निर्भीकता की परिपाटी।
जिस वटवृक्ष की छाँव पायी जिन की उँगली पकड़कर जीवन की राहें बनायीं, जिस वटवृक्ष की छाँव पायी जिन की उँगली पकड़कर जीवन की राहें बनायीं,
रह गई सब तदबीर धरी की धरी, अचानक ही जब छूट गई नौकरी! रह गई सब तदबीर धरी की धरी, अचानक ही जब छूट गई नौकरी!
जिस सच्चाई में जिए आज तक बदकिस्मती से वही झूठी हो जैसे। जिस सच्चाई में जिए आज तक बदकिस्मती से वही झूठी हो जैसे।
ख़ुशी की चुगलियां की, दुःख गले आ लगा, और मैं रो बैठा। ख़ुशी की चुगलियां की, दुःख गले आ लगा, और मैं रो बैठा।
कर ने कर को जाने क्यू जकड़ गया ये दिल ख्यालों में न जाने कहाँ खो गया। कर ने कर को जाने क्यू जकड़ गया ये दिल ख्यालों में न जाने कहाँ खो गया।
कितनी तसल्ली दें, दिल को.. कितनी बातें, बयां कर दें यूँ ही. कितनी तसल्ली दें, दिल को.. कितनी बातें, बयां कर दें यूँ ही.
वीरानियाँ बड़ी हैं, लगे न ज़िस्त-ज़िस्त सा,लगे न जश्न-जश्न सा। वीरानियाँ बड़ी हैं, लगे न ज़िस्त-ज़िस्त सा,लगे न जश्न-जश्न सा।
बंदूक चली जोर से, दरवाजे थे बंद भगदड़ लोगों में मची, साँस बची बस चंद बंदूक चली जोर से, दरवाजे थे बंद भगदड़ लोगों में मची, साँस बची बस चंद
मैं मध्यम वर्गीय हूँ खजूर के पेड़ पर झूले जा रहा हूँ। मैं मध्यम वर्गीय हूँ खजूर के पेड़ पर झूले जा रहा हूँ।
गाँव बेचकर शहर खरीदा चैन की नींद गंवाई है। गाँव बेचकर शहर खरीदा चैन की नींद गंवाई है।
तुझे समझाऊँ भी तो कैसे तू आज भी नादान जो है ज़माने की छोड़ तेरी बात कुछ और है तुझे समझाऊँ भी तो कैसे तू आज भी नादान जो है ज़माने की छोड़ तेरी बात कुछ और...
दिल के अरमानों को तोड़ के तू, क्यूं मुझे बेबस कर गई? दिल के अरमानों को तोड़ के तू, क्यूं मुझे बेबस कर गई?
सुकूं के पल दो पल हमेशा जहाँ हमे भी मिले।। सुकूं के पल दो पल हमेशा जहाँ हमे भी मिले।।