दूर शहर की लड़की
दूर शहर की लड़की
तारों को उंगली पर गिनती,
क्या तुम पढ़ती लिखती हो।
दूर फ़लक पे जो है लटके,
क्या तुम उन पे मरती हो।
रात की चादर ओढ़ के जानम,
छत पर ही सो जाती हो।
कोयल के उठने से पहले,
तुम झट से जग जाती हो।
ठंड हवा जब छूकर तुमको,
दूर शहर को जाती है।
फूलों में इक बात बहस की,
यूँ फौरन छिड़ जाती है।
इतनी प्यारी इतनी मीठी,
महक कहाँ से आई है।
ठंड हवा तुम्ही बतला दो,
क्या ये तुमने लाई है।
फूलों को इतरा कर बोली,
महक जो मैंने लाई है।
ये खुशबू उस लड़की की,
जो दूर शहर में रहती है।
ये खुशबू उस लड़की की,
जो दूर शहर में रहती है।