जब से ख़्वाब टूटे है
जब से ख़्वाब टूटे है

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जब से ख़्वाब टूटे है,
अपने हम से रूठे है।
राब्ता नहीं है अपनों से,
दुनिया में सब झूठे है।
नींद न मुझ को आती है,
ख़्वाब भी तुमने लूटे है।
राहत है अब सीने को,
सिगरेट जब से छूटे है।
कोई न मेरी सुनता है,
कर्म जो मेरे फूटे है।
'मीत' के जो भी दुश्मन है,
सब के सर पर जूते है।