STORYMIRROR

Rupam Kumar

Abstract

3  

Rupam Kumar

Abstract

चरागों की यारी हवा से हुई है

चरागों की यारी हवा से हुई है

1 min
214


चरागों की यारी हवा से हुई है

ख़तम तीरगी है, तभी रोशनी है


इबादत में होना असर लाज़मी है

वो नाज़ुक कली जो दुआ कर रही है


बिछावन मिरा क्यूँ सजाए गुलो से

की आँखों मे नींदे बची ही नही है


है गर्मी के मौसम में सर्दी का आलम

लिपट के वो मुझसे पिघलने लगी है


मैं आ तो गया हूँ फ़लक से वो लेकर

जो माँगी थी तुमने वही चाँदनी है


मुहब्बत की छा में जो थक के हूँ बैठा

खुला आसमां है तुम्हारी कमी है


यहाँ कुछ न कुछ तो सभी ने है खोया

जो सब कुछ हो हासिल तो क्या ज़िंदगी है


सभी लड़कियों से तो करता है बातें

मगर 'मीत' सबका दिवाना नही है



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract