दूर किसी एकांत में
दूर किसी एकांत में
भीड़ में तलाश रही थी
एक छोटा सा कोना एकांत का।
चारों ओर का शोरशराबा,
लोगों की तरह-तरह की बातें,
हॅसी और ठहाके के बीच शांति का,
सुकून का, थोड़ा सा ठहराव-
की चाहत थी मुझे।
तुमने तब इशारे से
बुलाया था अपने पास,
अपनी बगलवाली सीट पर बैठ जाने की
इच्छा जाहिर की थी हौले से।
फिर हट गए थे जरा सा
मुझे वहाँ स्थान देने हेतु।
वह मेरे सपनों का वास,
तुम्हारे पास,
क्षणभर-
बैठकर लगा कि,
"गर फिरदौस रूहे जमीं अस्त
हमीनस्तो, हमीनस्तो हमीनस्त।"
अगर जन्नत है कहीं,
तो यहीं है, यहीं है, है यहीं।