दुनिया
दुनिया
अपनी थी ही नहीं - तो कैसे पराई होगी ए दुनिया,
अपनी भी नहीं - तो गैरो की भी नहीं है ए दुनिया,
पल दो पल का खेल है,
रेत का एक ढेर है,
हवा के एक झोंके से,
न जाने कहा उड़ ज्याएगी ए दुनिया,
अपनी थी ही नहीं - तो कैसे पराई होगी ए दुनिया,
एक पल का ए सपना है,
यही तो बस अपना है,
नींद खुली तो पावोगे,
चली गयी सपनों की ए दुनिया,
अपनी थी ही नहीं - तो कैसे पराई होगी ए दुनिया,
दो पल में क्या पाना है,
जो भी है बस देना है,
फिर किस बात पे रोना है,
बस समझों कितनी खुश नशीब है ए दुनिया,
अपनी थी ही नहीं - तो कैसे पराई होगी ए दुनिया,
ए तो बहता पानी है,
जीवन आणि ज्यानी है,
आज नहीं तो कल ही सही,
कहीं न कहीं तो मिल ज्याएगी ए दुनिया !