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Shehla Jawaid

Abstract

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Shehla Jawaid

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दुःख सुख

दुःख सुख

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दुखों को मेने बहुत सालों पहना

बहुत सम्भाला और बहुत सहेजा 

हर पल सवाँरा पल -पल बढ़ाया

वक़्त-वक़्त पर उनको

साफ़ करके नया बनाया।


धोया इस्त्रि करके फिर कड़क बनाया 

कभी हो ना जाए

धूमिल एहसास हमेशा रखा 

पुराना होते ही नया दु:ख ले आती

फिर उसकी सार सम्भाल करती।

 

ज़िन्दगी गुज़रती जा रही थी

ओर बोझ बढ़ाती जा रही थी 

फिर साँस लेना भी हुआ मुश्किल

तब फैंक दिये उठा के सब 

सोचा अब सुख पहनूँगी।


जो होते हैं हल्के फ़ुल्क़े 

सम्भालने की ज़रूरत भी नहीं 

नया बनाए रखना भी ज़रूरी नहीं 

जब चाहा मुस्कुरा के नया ले लिया 

पुरानी परछाईं छोड़

नयी रोशनी आज़मायी

तब जा के ज़िंदगी समझ में आयी।


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