दृष्टिकोण
दृष्टिकोण


रूह से मेरी, मेरा जब जब हुआ था सामना।
इस ज़हां के दृष्टिकोणों को बदलना चाहा था।
क्या खुशी और ग़म कभी भी एक जैसे लगते है
भोज फिर जन्म-ओ-मरण पर हो रहा है क्यों भला?
बात बेटी को बचाने की करें सब भीड़ में।
जुल्म फिर भी कम नही क्यों बेटियों पर हो रहा?
जात पर या धर्म पर नित हो रहे दंगे यहाँ।
धर्म मानवता का कोई क्यों नहीं अपना सका ??
न्याय अब तक बिक रहा है कौड़ियों के मोल पर।
निरपराधों को सज़ा अपराधी खुल्ला घूमता।
पढ़ के भी चेतावनी चेता नहीं है आदमी।
नित नई दुर्घटना को अंजाम देता जा रहा।