कुछ कहना तो बनता है।
कुछ कहना तो बनता है।
मैं तो आपसे अनजान था।
केवल खुद में ही परेशान था,
जगाई मुझमें ,आशा आपने,
राख को चिंगारी बना दिया।
बुझा -बुझा सा रहता था,
आपने मुझे खिला दिया।
अब आप तो चुप बैठे हैं,
कुछ कहना तो बनता है।
मुझे तो कुछ पता न था,
सीखा दिया सब आपने।
हर - पल आकर यादों में,
जगा दिया मुझे आपने।
मैं खुद में भूला रहता था,
हर- पल जगाया आपने।
मैं तो इतना व्यापक न था,
खींचकर बढ़ाया आपने।
अब आप चुप बैठे हैं,
कुछ कहना तो बनता है।
मुझे राग का पता न था,
और धुन की समझ न थी।
नाचना-गाना और बजाना भी,
सीखा दिया सब आपने।
अकेला था बिंदास था,
अपनी बातों- मुलाकातों से।
मुझे बांध दिया है आपने,
देखकर ही अब तो आपको
बदल गया हूं मैं आजकल,
अब आप चुप बैठे हैं,
कुछ कहना तो बनता है।
चमक और चकाचौंध की भी,
मुझ पर होती थी कोई असर नहीं।
मैं ठहरा छुपकर अकेला गानेवाला,
संग सुर मिला दिया है आपने।
सादगी से मैं तो जीता था,
अपने रंग मुझे लगा दिया।
अब आप के रंग में रंगकर मैं तो,
देखो मैं ऐसे-कैसे चमक उठा।
अब आप तो चुप बैठे हैं,
कुछ कहना तो बनता है।
सतरंगी बनाकर दुनिया मेरी,
खड़े दूर क्यों मुस्कुराते हैं।
यदि मैं आपको याद आता नहीं,
फिर आप मुझे क्यों याद आते हैं।
कैसे मुझसे क्या खता हुई ?
आप भी कुछ बताते नहीं ?
पहले तो मेरा बसेरा था आपके मन में,
अब क्यों कभी पास बुलाते नहीं।
अब आप तो चुप बैठे हैं,
कुछ कहना तो बनता है।
क्या यह ऐसी बात पर ठीक है,
आप खुद ही सोच कर देखिए।
या कोई कुटिल कहीं आपको,
कहीं आपको बहकाया तो नहीं।
अगर टूट गया मैं तो,
फिर एकदम बिखर जाऊंगा।
शायद आप को ही देख कर,
मैं फिर से संवर पाऊंगा।
अब आप तो चुप बैठे हैं,
कुछ कहना तो बनता है।
मैंने तो सब कुछ ही,
बता दिया है आपको।
दिल-आईना उलट-पुलट कर,
दिखा दिया है सब आपको।
क्या इसमें कहीं कुछ खोट है ?
या फिर मैल है भरी हुई ?
अब है, आपकी बारी बची,
मैंने फरमा दिया सब आपको।
अब आप तो चुप बैठे हैं,
कुछ कहना तो बनता है।
हरिओम् !