द्रोपति की पुकार
द्रोपति की पुकार
द्रोपति की पुकार..
भरी सभा में खड़ी द्रोपति
कर रही पुकार,
पाँच पतियों के होते हुए भी,
आज कितनी लाचार,
एक से बढ़कर एक शूरवीर,
पाँचों हैं बलवान,
किन्तु पत्नी की रक्षा करने में,
पाँचों कितने लाचार,
युधिष्ठिर हैं धर्म की मूर्ति,
अधर्म होता देख रहे,
उसके भाई - बंधु ही,
उसकी लाज्ज से खेल रहे,
भीम बड़े हैं बलशाली,
करते सबकी रखवाली,
किन्तु पत्नी की रक्षा करने में,
हार कैसे उसने मानी,
अर्जुन जैसा धनुरधारी,
पानी में देख, लगाए निशानी,
आज अपनी ही विवशता देख,
हो रहा क्यू पानी - पानी,
नकुल और सहदेव ने भी,
सहनशीलता कैसे धारी,
दुःशासन खींच रहा,
द्रोपति की साड़ी,
रोती - बिलखती द्रोपति,
करे किसे पुकार,
सब के सब मौन है,
सब के सब लाचार,
रुद्धन स्वर में द्रोपति,
पूछे यही सवाल,
कहां हैं मेरे पाँच पति,
कहां हैं मेरा परिवार,
एक नारी की रक्षा करने में,
क्या सब के सब लाचार??
माताएँ खामोश है,
पितामहा ने भी,
चुप है धारी,
गुरुजन ने ये सब देख कर,
आँखे बंद कर डाली,
ये कैसी विडंबना,
वक़्त ने हैं क्या थानी,
बैठी लज्जा समेट कर,
भरी सभा में कुल की नारी,
दूःशासन साड़ी खीच रहा,
आँखो से टपक रहा पानी,
अब तो आजाओ गिरधर,
तुम बिन अब,
कौन करेगा रखवाली,
केशव. केशव पुकारती,
इन्द्रप्रस्थ की महारानी,
सुनकर भक्त की करुण पुकार,
आ ही गए गिरधारी......