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दर्द

दर्द

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बोलने से ज्यादा अब

ख़ामोश रहना अच्छा लगता है

कभी बहुत ही मुस्कुराती थी मैं

पर अब आँसू बहाना अच्छा लगता है

कभी पसंद थी महफ़िलें हमें बहुत ही

पर अब तन्हाई में वक़्त बिताना अच्छा लगता है

कभी हमें भी शौक था नया जहां बसाने का

पर अब खुद को ही मिटाना अच्छा लगता है

इश्क़ ना करना इस दुनिया में मैंने तो कर लिया

इश्क़ करके अब पछताना अच्छा लगता है

मत रो मेरी गज़ल पर ऐ मेरे "दोस्त"हमें तो

इस हाल में भी ये ज़माना अच्छा लगता है..


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