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अहसास-ए-दर्द

अहसास-ए-दर्द

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वो रेत मुझे बहुत याद आती है

दोपहर को सुलगती धुप में हम

पहली बार मिले थे समुद्र के किनारे

लोगों से नज़रे छुपाते चुराते

वो रेत मुझे बहुत याद आती है..

मेरे पैरों को जलाती वो रेत वो समन्दर

वो कांटो की उलझी झाड़ियाँ

वो ठंडी हवा, समन्दर पर फैली सीपें

मुझे बहुत रुलाती हैं

वो तुम्हारा मेरा हाथ पकड़ना

मुझे अपनी बांहों में लेना

बातें करना, हंसना, रुलाना

तुम्हारे आंखों के इशारे

मेरा शर्मा के मुस्कुराना

वो रेत आज भी अपने

प्यार का अहसास कराती है

वो रेत आज भी मुझे बहुत याद आती है

आज उस रेत को दर्द बहुत होता होगा

तुम्हारे बदल जाने का अहसास

वो भी महसूस करती होगी

आज वो भी हमसे मिलने के लिए

तड़पती होगी

आज वो सूनी होकर धूप में जलती होगी

हमारे पैरों की नमी को

जलाने के लिए तड़पती होगी

उसके दर्द का अहसास है मुझे

क्या तुम को मेरे दर्द का अहसास है?....

नहीं.....

हमारे प्यार की साक्षी है वो

हमारे प्रणय की साक्षी है वो

वो हमारे बंधन की साक्षी है

वो रेत-रेत नहीं, आत्मा है मेरी कहानी की...


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