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Vivek Gulati

Abstract Romance Tragedy

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Vivek Gulati

Abstract Romance Tragedy

दोस्ती

दोस्ती

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दो यार स्कूल में संग...एक मस्त मलंग और दूसरा हँसने में तंग,

जुड़े ऐसे जैसे डोर और पतंग |


सोच अलग पर दिल मिले, दोस्ती की राह पर साथ चले 

मलंग को मिला खेल कूद में सुकून...दूसरे पर चढ़ा इश्क का जुनून

मौज में जी रहा मलंग ज़िंदगी...गंभीर को लगा उसने पा ली सारी ख़ुशी,

धीरे- धीरे इश्क़ का बुख़ार उतरने लगा, रिश्तों का मतलब *समझ आने* लगा,

अब पता चला यह इश्क़ नहीं आसान,

उलझनों की गहराई से दिखता नहीं आसमान |


मलंग आगे बढ़ता गया...

खेल की दुनिया में *छाता* गया,

उसे भी दोस्ती के प्रस्ताव आने लगे..

किशोर अवस्था के रंग चढ़ने लगे,

गंभीर बोला दोस्त से दोस्ती के वास्ते...मत दोहरा मेरी गलती, तू चल अपने  ही रास्ते |


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