दोस्ती
दोस्ती
जो रास्तों में खो जाए।
जो वक्त के पहिए के नीचे रौंदी जाए।
जो दोपहर में छांव की पनाह मांगे।
जो बारिश की बूंद की तरह दरिया में बिख़र जाए ।
जो धूप पड़ते ही पिघल जाए ।
जो ढलते दिन के साथ मुरझा जाए।
जो सकरे रास्ते पर चल ना सके ।
जो ऊंची चोटियों की तरह नीचे देख ना सके।
जो पतझड़ में साख़ से गिर जाए ।
जो ओस की बूंद की तरह पत्ते से ढल जाये।
जो मागृ वेध आने पर राह बदल ले।
नहीं, ऐसी नहीं है मेरी दोस्ती।
जो किनारे पर पहुंच कर भी लहरों की तरह समुंदर का साथ ना छोड़े।
जो वक्त के साथ नए आयाम छू ले।
जो सागर में गिरे तो मोती बन जाए, वो बूंद।
जो पलाश के फूलों की तरह जेठ मास में भी खिली रहे ।
जो धूप में भी छांव की पनाह ना मांगे ।
जो शिखर पर पहुंच कर भी गुरुर ना करे।
जो सकरे रास्ते को भी मुस्तकबिल बना ले।
जो पतझड़ में भी ठूंंठ की तरह खड़ा रहे, वो पेड़ ।
जो कांटो के बीच भी फूलों सी मुस्कुराती रहे।
जो विषम परिस्थितियों में भी नई राहें खोज ले।
हां, ऐसी ही है मेरी दोस्ती।