दोहरा
दोहरा
सच भी बिखर जाता है इधर उधर ख़ुशबुओं की तरह
न जाने तुम कैसे झूठ को निवालों की तरह हलक के नीचे उतारते रहते हो
वतन के दिल में दिल है किसका और हुकूमत कौन करता है
न जाने तुम कैसे निहत्थे बच्चों पर वार कर लेते हो
सूखे हुए जख्म मरहम की ख़ुशबू कहाँ देख पाते हैं
न जाने तुम कैसे रोती हुई फसलों को भी उजाड़ने में लगे रहते हो
चापलूसी का धंधा बड़े जोरो के उफ़ान पर है आजकल
न जाने तुम कैसे बुलंद होती आवाज को बंद करने में लगे रहते हो
नन्हे नन्हे बच्चो को लेकर आयी है यहाँ परियाँ जन्नत की
न जाने तुम कैसे इन्हें अलग करने में लगे रहते हो
तन्हाइयों में भी कर लिया करो कभी मन की बात
न जाने तुम कैसे महफिलों में दोहरा चरित्र लेकर घूमते रहते हो
कितनी अच्छी लगती हैं यह आँगन में खेलती हुई किलकारियां 'नालंदा'
न जाने तूम कैसे इनकी जुबान काटने में लगे रहते हो!