दोहे - बरसात हो
दोहे - बरसात हो
सुख की अब बरसात हो, दुख हो जाएँ दूर।
मन की आकुलता हटे, मिले शांति भरपूर।।
प्रभु की कृति हैं हम सभी, एक ईश के रूप ।
अतुलित ऊर्जा दे हमें, मिले स्नेह की धूप ।।
पूजा जप तप के नियम,भाव बिना हैं व्यर्थ ।
मन की दृढ़ता से बने, मानव सर्व समर्थ ।।
आँगन में उतरी अभी, धूप लिए नवरूप ।
रंग नया छाया यहाँ, जागे भाव अनूप ।।
भूल-भुलैया में फँसा,आज मनुज अनजान ।
अति आवश्यक है उसे, देना गीता ज्ञान ।।
