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अच्युतं केशवं

Abstract

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अच्युतं केशवं

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दो अपरिचित

दो अपरिचित

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धीरे धीरे ढलती सांझ

पार्क में खड़े यूके लिप्टसों की

लम्बी होकर धरती पर फैलती छायायें

दूर एक कोने में

लड़ते-झगड़ते बंदरों का झुंड

दोपहर भरे से क्रिकेट

खेलते लड़केऔर


इन सबसे ऊबा हुआ

पश्चिमी कोने पर लगी

कुर्सी पर बैठा मैं

पुरानी मैगज़ीन में मुंह गडा़ए

पढ़ने का अभिनय करता

तभी ओ अपरिचित

तुम्हारा आना

ठीक उसी कुर्सी के दूसरे

किनारे पर झाल मुड़ी खाते

बैठ जाना


उत्सुकता उत्साह से भरे

तुम्हारे अवांछित प्रश्न

मेरे अनिच्छा से दिये गये उत्तर

और

अंत में लगभग खीजते हुए

मेरा कह ही देना

"आप बहुत बोलतीं हैं"

तुम्हारा मुझे और भी चिढ़ाते


मुस्कुरा कर दिया गया उत्तर

"अरे नहीं ! तूम चुप्पा हो"

फिर दो अपरिचितों के

सम्मिलित कहकहे

मैं डूबता लाल लाल सूर्य

क्या तुम्हें याद है।


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