Ravi Jha
Drama
अल्फाज़ की तलाश में
खो रहा आकाश में
धरती चीख रही है
अंबर पुकार रहा है
धरती अंबर के दंव्द में
सोच रहा इंसान है
अरे पूछ अपने ज़मीर से
उसके क्या ख्याल है।
मोहब्बत
गज़ल
तुम
मुलाकात
खेतों का राग
कोशिश में हूँ
इश्क
बदनाम शायर!
चम चम करता ताज है बेटी हमको तुझ पर नाज़ है बेटी । चम चम करता ताज है बेटी हमको तुझ पर नाज़ है बेटी ।
भूखा भिखारी...। भूखा भिखारी...।
बस लक्ष्य को अपने अंकित कर ले, तू आगे बढ़ जाएगा बाधाओं का हरण तू करके, ध्वजा विजयी लहरायेगा...! बस लक्ष्य को अपने अंकित कर ले, तू आगे बढ़ जाएगा बाधाओं का हरण तू करके, ध्वजा ...
एक मर्मस्पर्शी कविता...। एक मर्मस्पर्शी कविता...।
इस सरज़मीं पे ज़ुबान-ए-मोहब्बत सही या दास्तान-ए-सितम सही मेरे रहनुमा...? इस सरज़मीं पे ज़ुबान-ए-मोहब्बत सही या दास्तान-ए-सितम सही मेरे रहनुमा...?
शांत चेहरे की मुस्कुराहट...। शांत चेहरे की मुस्कुराहट...।
वो जिनकी आँँखों में मायूसी के लिए कोई जगह ही नहीं अपनी पलकों में सिर्फ़ जुनून लिये वो लोग जहाँँ म... वो जिनकी आँँखों में मायूसी के लिए कोई जगह ही नहीं अपनी पलकों में सिर्फ़ जुनून ...
जननी है यह जीवन की धारा, जीवन का उद्देश्य बताती है । जननी है यह जीवन की धारा, जीवन का उद्देश्य बताती है ।
मैं सब यादों को दिल में बसा के चला हूँ...। मैं सब यादों को दिल में बसा के चला हूँ...।
मेरे मरने के बाद मेरी कहानी लिखना, कैसे बर्बाद हुई मेरी जवानी लिखना...! मेरे मरने के बाद मेरी कहानी लिखना, कैसे बर्बाद हुई मेरी जवानी लिखना...!
लोहे ने तुझे बनाया है अपने को खूब तपाया है दृढ़ हौसला पाया है तुझे जीतना भाया है, मन में कुछ ठान... लोहे ने तुझे बनाया है अपने को खूब तपाया है दृढ़ हौसला पाया है तुझे जीतना भाया...
जब तुम लिखना बंद करो, शाम हो जाए, ज़िन्दगी की, ढल जाएँ हम संग-संग, चलो लिखते हैं तब तक! जब तुम लिखना बंद करो, शाम हो जाए, ज़िन्दगी की, ढल जाएँ हम संग-संग, चलो लिखते हैं ...
मुझमे राम भी बसे और खुदा भी मेरा भरोसा है जीसस और ईमान गुरु नानक भी... मुझमे राम भी बसे और खुदा भी मेरा भरोसा है जीसस और ईमान गुरु नानक भी...
जैसे पंछी अँधेरे होते लौट आते तुम भी घर लौट आना बेटा तुम लौट आना इस दिवाली लौट आना अपने हाथो से ... जैसे पंछी अँधेरे होते लौट आते तुम भी घर लौट आना बेटा तुम लौट आना इस दिवाली लौ...
इस दरख़्त कभी उस दरख़्त उछलें, कूदें फिर गिर जायें मन को आओ गिलहरी कर लें || इस दरख़्त कभी उस दरख़्त उछलें, कूदें फिर गिर जायें मन को आओ गिलहरी कर लें ||
एक गज़ल...। एक गज़ल...।
जो मैं लिखता हूँ...। जो मैं लिखता हूँ...।
लंका में अग्निकांड भी मैं था लंका में अग्निकांड भी मैं था
सूर्य मुस्कुराकर, खुद छिप जाएगा, कि तारों की रौशनी ही, अब इस जहाँ को, नई राह दिखलाएगी! सूर्य मुस्कुराकर, खुद छिप जाएगा, कि तारों की रौशनी ही, अब इस जहाँ को, नई राह दिख...
थकी - थकी - सी है यह बेज़ार ज़िंदगी अब इसे थोड़े आराम की ज़रूरत है पसीने - पसीने हो गई है जल - जल के..... थकी - थकी - सी है यह बेज़ार ज़िंदगी अब इसे थोड़े आराम की ज़रूरत है पसीने - पसीने ह...