दिवानगी
दिवानगी
किसी के दिल का नग़मा हमसे रुठ जाता है
मनाये हम जब उसको फिर वो मान जाती है,
कैसे बतलाऊ उसको हमको तुम्हारी खबर है,
मगर आज कल वो मुझसे बेख़बर रहती है।
किसी के दिल कि मदहोशी हमे बेहोश करती है,
खुलते हैं राज़ जब हमें वो खामोश करती है
हमने किया था यकीन प्यार कि बंद आँखों से
ना जाने क्यूँ आजकल मुझसे तनहा सी रहती है।
किसी के दिल की परछाईं सब कुछ लुट जाती है
हमारे पास आकर वो फिर दूर हो जाती है
ये परीक्षा है प्यार या कोई इश्क का इम्तिहा
प्यार के पहले मुझसे बेवफ़ाई कर जाती है।
किसी के दिल की बेचैनी मुझे जिने नहीं देती
उसकी बंदिशे अब मुझको रोने भी नहीं देती
खफ़ा हो गये सब मुझसे मेरी ही मोहब्बत पे
उसकी दिवानगी मुझको मरने भी नहीं देती

