दिनकर
दिनकर
तिमिर धरा का तुम हर लेते,
जगमग वसुधा को कर देते
नव जीवन का करते संचार
तुम जग जीवन का आधार।
यों उदयाचल पर छा जाना
फिर भोर सुहानी कर जाना
हैं तुम बिन सूना यह संसार
हे ! जगत के पालनहार।
रश्मि प्रभा का झिलमिल ताज
देख, मुदित मन मेरा आज
उजला सा यह रूप तुम्हारा
रंग सुनहरा प्यारा -प्यारा।
यह दिव्य आभा मंडल तेरा
पथ आलोकित करता मेरा
वन उपवन तुम महका देते
अलसाये खग भी चहका देते
अधखुले उनींदे स्वप्निल लोचन
फिर जगमग वसुधा हरषाई
दूर क्षितिज पर किरण पुंज देख
रजनी की तो आंखें भर आईं।
