छोटी से बड़ी ...वो बचपन के दिन भी....
छोटी से बड़ी ...वो बचपन के दिन भी....
ए दाता देना ही है अगर कुछ मुझे,
तो मेरा बचपन दिला ज़रा।
फिर से अपने छोटे पांव से
मुझे घर घूम आना है।
अपने छोटी सी मुस्कान से
सबको फिर से खुश करना है।
इस बड़े हो गए दिल को
छोटा कर दे ज़रा।
ए दाता देना ही है अगर कुछ मुझे,
तो मेरा बचपन दिला ज़रा।
फिर से उस सावन में
बेसुध हो के नाचना है।
मचलते हुए नदी के पानी में
फिर से अपनी कागज की नाव छोड़ना है।
बगीचे के वो झूले पे झूलने दे ज़रा।
ए दाता देना ही है अगर कुछ मुझे,
तो मेरा बचपन दिला ज़रा।
स्कूल में दोस्तों के साथ फिर से
बर्फ के गोले खाने हैं।
और गाँव के तालाब में
बेफिक्र गोते लगाने है।
चिड़िया का वो चहकना सुनने दे ज़रा।
ए दाता देना ही है अगर कुछ मुझे,
तो मेरा बचपन दिला ज़रा।
मिट्टी के खिलौने बना के
फिर से उनसे खेलना है।
टूट गए खिलौने तो मन भर के रोना है।
बचपन की उन यादों में बहने दे ज़रा।
ए दाता देना ही है अगर कुछ मुझे,
तो मेरा बचपन दिला ज़रा।
बचपन के उस गली में फिर से मुझे जाना है।
पुराने उन लम्हों को फिर से
आंखों में बसाना है।
एक जैसी लगने वाली
इस ज़िन्दगी से फुरसत दिला ज़रा।
ए दाता देना ही है अगर कुछ मुझे,
तो मेरा बचपन दिला ज़रा।
