कोयल
कोयल
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देखो वृक्ष पर कोयल आई,
मीठी है इसकी बोली l
दसो दिशा में कूक-कूककर ,
आमों में मिसरी घोली l
तुम बाहर ही क्यों उड़ती हो ,
घर के भीतर आओl
ऐसे क्या देखा करती हो,
मुझको भी बतलाओ l
रग तुम्हारा काला है पर,
मन की हो तुम भोली l
मीठे गीत सुनाकर तुमने ,
आँख हमारी खोली।
कैसे तुम यह सब करती,
कैसे मीठे वचन सिखाती
सबसे मिलजुल रहना ,
तुम तो हो सिखलाती l