दिलकश तबस्सुम ने...
दिलकश तबस्सुम ने...
दिलकश तबस्सुम ने उम्मीदों को जगाया था कभी
मोहब्बत की रस्मों पर ख़ुद को आज़माया था कभी
अपनों के हुजूम में भी उस को तन्हा पाया था कभी
कोई आँचल मेरी आँखों के आगे लहराया था कभी
किसी हसीन क़ुर्बत का मैंने सपना सजाया था कभी
ऐसी ही तमाम हसरतों को दिल में बसाया था कभी
हमने अपनी ज़िन्दगी पर एक दांव लगाया था कभी
फिर टूट कर बिखरा हुआ वुजूद हाथ आया था कभी
अपने जुनून के हाथों दिल का चैन गंवाया था कभी
ख़्वाब सच होते नहीं ये आँखों को समझाया था कभी।
