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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

Abstract

दिलचस्प होता है

दिलचस्प होता है

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दिलचस्प होता है

दो विपरीत भावों के

ठीक ठीक मध्य ठहरना।


हालांकि दोनों

भावों की क्रियाशीलता को

देखने और समझने की

सर्वाधिक उपयुक्त जगह

यही है


और आप के पास एक

अवसर होता है कि

अपने लिये निर्णय लेने का कि

आप को किधर जाना चाहिये।


आजकल यह सहज स्थिति भी

अतन्यन्त जटिल हो गयी है

दोनों विपरीत भाव एक

दूसरे की सीमाओं में

मिल जाएंगे


अपने को उसी भाव सा

दर्शाते हुये

जिसकी सीमा में वे घुसे हुये हैं

यद्धपि इनकी पहचान का

एक अवसर है

कि आप इन्हें देखने


 और समझने से भिन्न

 महसूस कर पहचान करने का

ढंग सीख लें।


तमाम बहसें एक तरफ

आप का अपना अनुभव एक तरफ

और अनुभव यहाँ तर्क नहीं

काम करते है

आग आग होती है

और पानी, पानी।


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