दिल
दिल
कभी कहीं मिल गया खुदा
तो पूछूँगा
क्यों बनाया यह दिल
क्यों जगायीं इच्छाएँ अपार।
देना ही था तो देता पत्थर
सख्त-सा सीने में
जो पिघलता नहीं
किसी के आँसुओं से
बेध नहीं पातीं किसी की
बातें जिसे आर-पार।
फिर सोचता हूँ
दिल धड़कता है तो
लगता है ज़िंदा हूँ,
पत्थर का दिल तो धड़कता नहीं !