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Vivek Madhukar

Abstract Others

4.8  

Vivek Madhukar

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बुद्धिमान ?

बुद्धिमान ?

1 min
511


छोटे थे जब

   दौड़ा करते थे सड़क किनारे

   खेलते खेल

   गड्ढों से बचकर निकलने का।

या, बहुत बाद में

   एवरेस्ट की चोटी छूना,

   दस मंजिला इमारत से

      लटकते तार पे चलना।

डरते हुए,

   पर

   एक पैशाचिक सोच के साथ

खुद को ऊँचाई से गिरते

   चूर-चूर होते

      देखना।


पर

जहान में

   दूसरा गिरना भी है

जहाँ

पूरी तरह धराशायी नहीं होता मन

   लोक लिया जाता है

      हर्षित बाँहों के द्वारा

प्यार में डूबना

   ऐसा ही है !


परन्तु बुद्धि आगाह करती है

   गिरना गिरना है

      डूबना डूबना

   पीछे छोड़ जाएगा

      दुःख-दर्द, अवसाद

   कुछ देर बाद महसूस हो सकता है

      पर बच नहीं सकते उससे।


भाड़ में जाए बुद्धि !

भाड़ में जाए विद्वता !


स्वागत है तुम्हारा :

   सड़क के गंदले गड्ढों

   एवरेस्ट की चोटी

   गगनचुम्बी इमारतों पे बंधे तार।


कौन चाहता है

   बनना

      बुद्धिमान

मैं नहीं,

   क्या तुम ?


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