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Kunda Shamkuwar

Abstract Tragedy

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Kunda Shamkuwar

Abstract Tragedy

दिल दुनिया etc

दिल दुनिया etc

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साथ साथ पलते बढ़ते हम कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला...

हमारी सोच एक होती थी....

तुम्हारा चेहरा देख मैं तुम्हारे मन की बात भांप लेती थी....


कॉलेज ख़त्म होने के बाद हमारी राहें जुदा हो गयी....

तुम इंजीनियरिंग करने बाहर गये और मैं मेडिकल के लिए दूसरे शहर...

कभी जो बातें हमारी एक जैसी होती थी उनमें अब एकसौ अस्सी डिग्री फ़र्क़ होने लगी....

तुम्हारे सब्जेक्ट अलग थे...मेरे सब्जेक्ट अलग थे.....


मेरे लिये शहर नया था और सारी बातें भी नयी सी थी....

कितने दिनों तक समझ ही न पायी कौन सी बात किस से करूँ ?

तुम मशीनों में रमने लगे और मैं इन्सानों के दुखदर्द बाँटने में....

धीरे धीरे तुम अपनी दुनिया मे खो गये और मैं अपनी दुनिया मे सिमटती गयी...

तुम्हारे रोज़ के फोन अब हफ्तों में आने लगे....

तुम्हारी मसरूफियत कुछ ज्यादा बढ़ गयी थी.....

शायद तुम्हारी नयी और अलग दुनिया में मेरे लिए कोई जगह नही थी....

मैंने कई दफ़ा तुमसे बात करनी चाही लेकिन तुम हर बार किसी प्रोजेक्ट में बिजी होते थे

शायद तुम मशीनों के साथ मशीन हो गये थे....

और मैं इंसानों के साथ रिश्ते बनाती गयी....

सालों के बाद तुम्हारा एक बीमार के रूप में मेरे पास आना हुआ....

मैनें भी मशीनी अंदाज़ में तुम्हारा मुआयना किया....

इतने अर्से बाद मैं भी एक मशीन में तब्दील हो गयी थी....

इंसानों को जाँचनेवाली बस एक मशीन!!


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