दीप जो जला
दीप जो जला


दीप जो जला
उजली हुई राहें
अग जग सँवरा ।
जलता रहा
प्रकाश गीत गाता
तम दूर भगाया
प्रीत की टोह
रोशन हुआ जग
हारी निविड़ निशा ।
पतंग जला
दीप से मिल जाना
प्रेम की पराकाष्ठा
हाय.. अर्पण
कैसा ये समर्पण
मन जान न पाया ।
सिसक रहा
था, रात भर जागा
थका, दिन में सोया
कोने दुबक
मधुर स्मृति स्वप्न
संजो रहा अकेला ।