प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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बचे रहना
शतरंज की चाल
सियासी है बिसात
कब किसकी
पलट जाए बाज़ी
मिले शह औ मात ।
छवि
दीप जो जला
माँ की याद मे...
गीत सुनाना
माटी के घर
माँ
छूना आसान
आई कोंपलें