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प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

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प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

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माटी के घर

माटी के घर

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पत्ते झरते

डाली छोड़ दी साथ

किसे कोसते।


भोर की दूब

पहन ओस मोती

फबती ख़ूब।


सुख सहज

दुःख के सफर का

चुकाता कर्ज।


भीड़ दिखावा

साथ यहाँ छलावा

चल अकेला।


माटी के घर

बेहद मजबूत 

रिश्ते पकड़।



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