STORYMIRROR
माटी के घर
माटी के घर
माटी के घर
माटी के घर
पत्ते झरते
डाली छोड़ दी साथ
किसे कोसते।
भोर की दूब
पहन ओस मोती
फबती ख़ूब।
सुख सहज
दुःख के सफर का
चुकाता कर्ज।
भीड़ दिखावा
साथ यहाँ छलावा
चल अकेला।
माटी के घर
बेहद मजबूत
रिश्ते पकड़।
More hindi poem from प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
Download StoryMirror App