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Sheela Sharma

Abstract

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Sheela Sharma

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दीप जलाएँ

दीप जलाएँ

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दीप जलायें तो तमस हटे अन्धकार को दूर भगाये

अंधकार के अमावस मनमें अंजाना रिश्ता ज्योति पर्व बनाये

जग साँची बात है जब से इस मायापुरी में आये

बुद्वा पोटली रिश्तों की भर संग पीठ पर लाये

जीवन क्रम की रीत यही खोना पाना मिलन जुदाई 


आस पास अपनों की यादें मानस पटल में थी छाई

फिर संसारी रिश्तों का खेल देख अन्तर्मन जाग गया

मन का चिराग बुझ गया धुआँ भरम का छँट गया


थकित मन को राहत मिले ऊर्जा लेने

मुखिया को छोड़ सब साथ चले 

मौज मस्ती भाग दौड़ में दिनं बीतते पता न चले 

बोझिल आँखें मानो जड़ हो गई गया बाई ने खबर किया

फ्लोनोग्राम में अटकी सुई छुट्टी दो

बाली ने भागदौड़ इन्तजाम किया

बतला सदस्य परिवार का शल्यचिकित्सा बाबूजी की

करवा क्या जीवन दिया।


बेबस वदहवास जिदंगी इक पल मानो ठहर गई

उसके सुर कोसों दूर से कानों में रस घोल गई

उसके मात्र स्पर्श से जज्वातों का सैलाव विखर गया

ऐसालगा उसकी साँसों ने अपने दामन में सिमटा लिया


ये भी रिश्ता अल्फाजों का जिसने जुलाहे जैसा काम किया

तार तार बींध धागे से रिश्ते की ऐंठन को सीधा किया

उम्र के पड़ाव में दो पल जीना हँसना रोना सिखा दिया

तन मन को सुकून दिलाना उस हमर्दद ने बता दिया


जैसे जीवन में जीने के लिये हवा, पानी, उर्जा मिलती रहे

अमीरी गरीबी ऊँच नीच का भेदभाव त्याग

सदा दिल में बसाते रहे 

ये अनमोल चिराग है जलते रहें चलते रहें

विश्वास के साथ अपनाते रहें।


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