धूप
धूप
गंध जो फैली,
तुलसी के आंगन में
बहती पवन भी
लहराई
छितराई धूप में !
मौसम-प्रशासन ने जल्दी से भेजा
बदली को अम्बर में
फिर से बरसने को
धुंधलाई धूप में !
ठाकुर जी महके घी की उनाई से
बाती भी चहकी
लरजती
मुरझाई धूप में !
लड्डू प्रसाद के उतरे हलक में
जिस तिस पे बरसीं
असीसें
गमखाई धूप में !
तितली ने भंवरे से बोल दो बोले
फूलों ने जी से लगाया,
बलखाई धूप में !
सावन ने लहराके
अम्बर की नाव करी खाली
भादों को आना था खेत में,
कुंभलाई धूप में !
सपनों पे रंग छितराए
रिश्तों के कण कण चमके
रेत में हीरों से
आंखों के जोहड़ भी उफने,
पपड़ाई धूप में !
किरणें जो टपकीं रूप से चंदा के
देहरी में क्यों रहती लाजो
आया था सोलहवां,
फगुनाई धूप में !
मारा जो कंकड़ पनघट पे रूप ने
आंगन में रम गई रंगोली
हल्दी का सुर्ख हुआ चेहरा,
अलसाई धूप में !