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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Inspirational

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Inspirational

धूल

धूल

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धूल को धूल समझना भूल है

धूल अतीत और भविष्य का मूल है

जब आंधी आती है

पैरों तले पड़ी धूल

घुस जाती है आंखों में

चिपक जाती कपड़े से

ढक लेती अपने आकाश को

झकझोर देती उस विश्वास को

जो तुक्ष, व्यर्थ ,बोझ समझता

धूमिल धूसरित रौंदी जाती धूल को

भूलना मत

धूल में शामिल है

धूल में मिल चुके

पहाड़ कि विशालता

नदी का प्रवाह

समंदर की गर्जना

वृक्ष की मजबूती

भुपतियों का राजमुकूट

प्रतिमान पुस्तकों के पन्ने


धूल को धूल समझना भूल है

धूल अतीत और भविष्य का मूल है।।

धूल का परवाह करो 

धूल से डरो

धूल बनने से पहले

धूल की समझ होने पर

धूल का साथ और सहयोग होने पर

दुनिया सिमट कर 

आंगन में समा जाएगी

एकाकार हो जाएगा

अंदर बाहर का अंतर्द्वंद

फिर मुट्ठी में बंद कर लोगे आकाश

खिड़की पर बादल का पर्दा होगा

दीवार में बन जाएंगे जरूरी दरवाजे

धूल का अस्तित्व शाश्वत है

धूल में विभेद मत करो

गमले में गुलाब उगाओ गेहूं नहीं 

धूल चाहे तो 

गेहूं कल गुलाब बन सकता है

नागफनी भी कांटेदार गुलाब बन सकता है


धूल को धूल समझना भूल है

धूल अतीत और भविष्य का मूल है ।।



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