,"धुआँ होती जिन्दगी "
,"धुआँ होती जिन्दगी "
मैं धुआँ होती वह जिन्दगी हूँ
जो हो रही तब्दील राख के ढेर में,
जब करते तुम धूम्रपान
तुम ही नही तुम्हारे अपनों को भी
लेती मै आग़ोश में,
और करती उनको भी तब्दील
नर कंकाल में।
मै धुआँ होती वह जिन्दगी हूँ
एक दिन हो जाऊँगी मैं राख
और मिला दूँगी तुमको ख़ाक में,
तो करो तुम तौबा
छोड़ो मुझे
तुम भी खुश
मै भी खुश।
मै धुआँ होती वह जिन्दगी हूँ
जो धुंए को पी कर करती
किडनी फ़ेल
और देती जन्म
मुँह के कैन्सर को,
असमय कष्टदायी,
मृत्यु को लगाना हो गले
तो आओ
मेरा पान करो,
नित धूम्रपान करो,
धुआँ होती जिन्दगी
मे कंकाल का तुम आह्वान करो।