धरती का कर्जदार हूँ
धरती का कर्जदार हूँ
मैं धरती का कर्जदार हूँ
ऋण चुका नहीं पा आऊँगा,
ब्याज तो दूर की बात है
मूल भी ना दे पाऊंगा,
जन्मदायनी पालनहारी
अपना सर्वस्व लुटाती है ,
हवन वेदिका पीड़ाहारी
जीवन की तारंणहारी है,
मैं तो धरती माँ तेरे चरणों की
रज भी ना बन पाऊंगा ,
तिनकातुल्य जीव हूँ इस जग में
तेरी ममता के झोंके के बिना तो
एक पल भी ना उड़ पाऊँगा,
तेरी स्नेह की नमीं के बिना तो
सूखा रेत सा झड जाऊँगा,
तेरी देह कतरा कतरा होकर
हमको सब सुख देती है,
खुद के बदन पर दरारें खोदकर
मधुर झरनों को हमारे लिये बहाती है,
मीठा नीर भेंटकर सरिता का हमको
खुद सागर का खारापन पी जाती है,
रई के फुहिया सा आँचल देकर हमको
खुद काँटों पर सो जाती है,
हमारे निवालों की खातिर
खुद की छाती पर अन्न उगाती है,
तेरे लाड़ दुलार की अमूल्य सौगात
कभी ना लौटा पाऊंगा
खुद की सांसो को भी देकर
इनका मूल्य ना चुका पाऊँगा ।
