धरती का ईश्वर
धरती का ईश्वर


मां, धरती पर खुदा का दूसरा नाम है तू ।
मां, एक शब्द में जैसे समझ आती है दुनिया सारी।
ममता की है मूर्ति तू, तेरे जैसा ना कोई ।
तेरे बारे में कहूं जितना उतना है कम।
धरती पर है दर्जा तेरा खुदा से भी ऊपर।
सागर से भी ज्यादा गहराई है तेरे प्यार की,
नापना चाहोगे तो भी नाप ना पाओगे ।
इसकी ममता का मूल्य आंकने जाओगे,
तो दुनिया की सारी दौलत हार जाओगे,
फिर भी मां की ममता का मूल्य नहीं आ पाओगे।
९ महीने कोख में पीड़ा सहकर जन्म देती है संतान को,
फिर भी वह पीड़ा लगती है उसको मीठी ।
संतान की खुशी में होती हैं वो खुश ,
और संतान के दुःख में दुखी।
भले खुद भूखा रहना पड़े,
लेकिन अपनी संतान को भूखा नहीं मारती कभी।
सच में कितनी अच्छी होती है ना मां।
मां के जैसा निस्वार्थ प्रेम और कहीं नहीं।
बिना कोई स्वार्थ हरदम रखती ख्याल।
कभी गुस्से में आकर संतान को मारती है,
फिर बाद में
खुद ही रोने लग जाती है ।
कभी कभी सोचती हूँ तो हँसी आ जाती है,
कितनी अजीब होती है ना मां ?
कहने को तो वो मां हैं ,
लेकिन है वह सबसे अच्छी दोस्त ।
वो मां भी है, दोस्त भी है और शिक्षक भी ।
कितने किरदार एक साथ निभाती है वह ।
सोचती हूं कभी थक नहीं जाती वो ?
उसकी संतान पर अगर आंच आए कोई ,
तो कुछ भी करने पर उतारू हो जाती है वह।
यहां तक की उस खुदा से भी लड़ जाती है वो ।
संतान चाहे कितनी भी बड़ी हो जाए ,
लेकिन उसके लिए हमेशा छोटी ही रहती है ।
संतान बड़ी हो जाती है,
लेकिन मां कभी बूढ़ी नहीं होती ।
मरते दम तक वह संतान की फिक्र करती रहती है।
कितना कुछ करती है मां अपनी संतान के लिए ,
लेकिन करती क्या है संतान मां के लिए ?
चाहे कितना भी कर ले संतान मां के लिए
लेकिन कभी भी उसका ऋण नहीं चुका पाएगी।