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धरती-हम सबकी माँ

धरती-हम सबकी माँ

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गन्दा करना,

सब जानते,

साफ़ करना,

कोई नहीं चाहता।


मैं सबको,

अपना बच्चा मानती,

सबके लिए दिन,

रात चलते रहती।


ना सूरज ना चाँद,

ना बारिश ना सूखा,

कोई ना मुझे हिला सके।


मैं बस चलती रहती,

मैं बस चलती रहती,

मेरे बच्चे भूखे ना रहे,

मैं बस चलती रहती।


सब कुछ सहती रहती,

ताकि वो कमजोर ना पड़े,

बस इतना कहना है,

मुझे बस गन्दी ना करो।


एक दिन ऐसा आएगा,

मैं बस रुक जाऊँगी,

सब सहते-सहते,

कमजोर पड़ जाऊँगी।


तब कौन सँभालेगा तुम्हें,

तब कौन देखेगा तुम्हें,

बस करो अब बस करो।


मुझे अब साँस लेने दो,

मुझे भी अब जीने दो,

मुझे बस अब चलने दो।


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