धर्म
धर्म
कहर सा जायेगा गर जमीं के वंदों में सनातन धर्म नहीं आयेगा,
जहर सा घुल जायेगा गर जमीं के वंदों में जीवक कर्म नहीं आयेगा
कुछ तलबदार होते अक्सर वही दोस्त घर परिवार रिस्तेदार होते हैं,
कुछ तबलदार होते अक्सर वही दोस्त घरपरिवार में गद्दार होते हैं
उन चंद लम्हों की सिराईं को कौन याद करता है,
नई वसंत ए बहार पर कौन सा पात फिर अपना है।
