धोखा
धोखा
मेरे चेहरे की मुस्कराहट तो सबने देखी,
पर दिल के अंदर कोई झाँक नहीं पाया।
आँखों का काजल और माथे की बिंदिया तो सबने देखी,
पर मन पे लगी चोट कोई समझ नहीं पाया।
हर एक शख्स पे मैंने भरोसा करके देखा,
पर मेरा भरोसा तोड़ने से कोई बाज़ नहीं आया।
सबने सोचा बस अपने अपने बारे मैं,
साथ देना तो दूर कोई हाल पूछने तक नहीं आया।
कितने दिल से मैंने सबको अपना बनाया था,
पर कौन कितना अपना है येह मुझे वक़्त ने समझाया।
हर रास्ते हर झरोखे पे मैंने नज़रे बिछा के रखी थी,
जिस शख्स का इंतज़ार था मुझे वो दूर दूर तक नज़र नहीं आया।
रह रह कर सह सह कर दुनियादारी की समझ मुझे आने लगी,
जिसने तोडा था बेरहमी से दिल मेरा उसकी असलियत नज़र आने लगी।
सबने बड़ी आसानी ने कह दिया सब भूल जाने को मुझे,
इस दिल मैं चल रहा प्यार, धोखे और नफरत का सैलाब कोई समझ नहीं पाया।
