ज़िंदगी की राजनीति
ज़िंदगी की राजनीति
1 min
27.3K
इस ज़िंदगी की राजनीति में,
हर अपना बेगाना सा लगता है।
और जो कोई बेगाना दो लफ्ज भी अपनापन जता दे,
तो बाकी सब बेमाना सा लगता है।
इस अपने पराये की जंग में
कुछ इस तरह उलझते जा रहे हैं,
के अपना साथी बेगाना और
दूसरे का हमसफ़र सा लगता है।
हर पल प्यार को तरसती इस ज़िंदगी में,
प्यार की कोई कीमत ही नहीं रही,
जो कभी अनमोल हुआ करता था,
अब सरेआम मुफ्त में बिका करता है।
रिश्ता दिल से हो या हो खून का बन्धन,
गर मोल लगे सही तो कुछ नही टिक्ता है।
अगर है कुछ अनमोल इस सारे जहाँन में,
तो वो और कुछ नही बस एक माँ का प्यार और दूजा बाप की चिंता है।
