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Garima Gupta

Abstract

4.5  

Garima Gupta

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अंतिम सच्चाई

अंतिम सच्चाई

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ये बिन मौसम की बारिश भी, कुछ तो कहना चाह रही है

क्या खोया क्या पाया, शायद ये समझाना चाह रही है

आज़ाद पंछी हुआ करते थे हम भी कभी, कैद हैं आज घर के किसी कोने मैं

ऐसा क्या किया होगा हमने, जो कुदरत ये दिन दिखला रही है


भागदौड की ज़िन्दगी मैं, जहाँ पल भर की भी फुर्सत ना थी

पैसे कमाने की जद्दोजेहद मैं, खुद अपनी ही सुध ना थी

क्या रिश्ते क्या नाते, खुद अपने को भूले बैठे थे हम

ऐसे मैं क्या है असल ज़िन्दगी, ये आईना हमको दिखा रही है


बदल रहा है मौसम, बदल रहे हैं ख्याल भी

घर की दाल रोटी मैं भी मिलता है सुख, ये नया एहसास करा रही है

ना किसी के आने का इंतज़ार, ना किसीके जाने का गम

किसकी पसंद का आज बनेगा खाना, बस एक यही सवाल उठा रही है


बंद है मंदिर, मज़्जिद और गिरिजाघर के द्वार भी

इंसान मैं ही बस्ते हैं भगवान्, शायद यही बतला रही है

ना बीते कल की फ़िक्र, ना आने वाले कल की कोई खबर

एक मौत ही है अंतिम सच्चाई, इससे रूबरू करवा रही है।                                                  


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