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Vivek Gulati

Abstract

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Vivek Gulati

Abstract

धोखा, धोखा, धोखा

धोखा, धोखा, धोखा

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बार बार खाया,

सबने हमेशा समझाया।

धोखा, धोखा, धोखा

जिंदगी ने बार बार टोका।


हम नहीं सुधरेंगे

खाते ही रहेंगे।

धोखा धोखा धोखा

जिंदगी ने बार बार टोका।


सब अच्छे हैं

ऐसा कैसे कर सकते हैं।

यह वैसा नहीं

उस जैसा नहीं।

धोखा धोखा धोखा

जिंदगी ने बार बार टोका।


भोले हो या बेवकूफ

समझे नहीं दुनिया के रंग रूप।

मतलबी हैं लोग

बेइमानी का लगा है रोग।


पूरा हो अपना मकसद

ईमान नहीं देता दस्तक।

धोखा धोखा धोखा

जिंदगी ने बार बार टोका।


जीत किसकी, नहीं पता

ईमान उसने बेचा, मेरा क्या।


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