धनतेरस
धनतेरस
क्या ख़रीदने निकले हो
वो चाँदी की पायल या
सोने की बालियां,
या फिर लक्ष्मी गणेश जी को
लाने की है तैयारियाँ।
जो हो सके तो
कुछ वक़्त भी
खरीदते ले आना बाज़ार से,
छः बरस से माँ ने तुम्हे
ठीक से निहारा भी नहीं।
कैसे निहारे,
तुम्हें तो ये भी पता
ना लगने दिया कि
अब उसे एक आंख से
धुँधला दिखने लगा है।
तुम्हारे आने की आस में
निगाहें अब भी दरवाज़े पर
टकटकी लगाए रहती है।
काश तुम कुछ पल की खुशी
उनके लिए भी खरीद पाओ,
जिनकी दीवाली अब भी
तुम्हारे आने के इन्तज़ार में,
गांव के उस खंडहर हो चुके
मकान में अकेले ही गुज़रती है।