"देश के सपूत"
"देश के सपूत"
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वतन मेरा जान से प्यारा,
जिसकी मिट्टी है मेरी माता ,
हूँ मैं हिन्दूस्तानी
जब देश के प्रति,
बलिदान करने का,
अवसर आया था।
तब मेरे देश की धरती ने,
फल-फूल सब अपने लुटाये थे।
अम्बर भी देख रहा था,
उस वक्त सब कुछ ये।
तब सोच-समझने के बाद,
आया था उसको याद।
देश के प्रति, कुछ करने का जज्बा।
और उसकी आँखों से,
होने लगी थी अमृत-वर्षा।