देखो कितना अच्छा हूं
देखो कितना अच्छा हूं
तुम पागल हो झूठ नहीं बोलते हो,
मैं बोल लेता हूं देखो कितना अच्छा हूं।
सब-कुछ सही बोलकर तुमको मिलता क्या है,
जब सब बोलते ही हैं तो फिर भी तुमको क्या है।
सच को झूठ झूठ को सच बताकर जीते हैं लोग यहां,
तुम ढूंढते हो हर किसी में गांधी हरिश्चंद्र वो अब कहां।
सब सच सच ही हो नहीं होते कुछ कुछ मिला होता है,
सारे पर्दे सही जो सब-कुछ साफ ढक लें सिला होता है।
लेकिन उम्मीद की जा सकती हैं किताबों से दीवारों से।
अब तुम एक से जो भी करना आजमाइश नहीं हजारों से।
