डूब गई सुरज की किरणें
डूब गई सुरज की किरणें


डूब गई सूरज की किरणें टूट गए हैं तारे
बिख़र गए मोती के दाने छा गए अंधियारे।
वर्षा की बूंदें बादल में अटक गए हैं सारे
सागर कब के सूख चुके, अब थम गई हवा रे।
कवि कविता लिखन वाले कहे अमित दु:खिया रे
तुफां एक दिन आया ऐसा उजड़ गयी बगिया रे।
कोसों दूर गये अब खुशियां ग़म हो गए प्यारे
किस पे आस लगाऊं अब मैं जिऊं किसके सहारे।
वर्षों से संजोया अरमां बिखर गए हैं सारे
वसुधा पर छाया सन्नाटा चिड़ियों को चहका रे।
मझधार में फंस गया हूं नैया पार लगा रे
जो होना था हो गया अब सूरज को चमका रे।