ढलती जिंदगी
ढलती जिंदगी
उम्र रुकी नहीं चाहते अधूरी रह गई
तजुर्बे जो हुए वो झुर्रियों में बदल गये
एक दिन मिलेगी कामयाबी
यही सोच के सूरज को ताकते रह गये
हुनर कुछ काम न आया मुझे
लोगों की निकाली खामियां रह गई
बनाना था मुकाम दुनिया में
कुछ टूटी हुई ईंटें रह गई
अखबारों की सुर्खियों में आना का शोख था
शहरों के अंधेरे में गुमनाम होकर रह गये
जिंदगी अधूरी किताब थी
आखरी पन्ना बुढ़ापे पर आकर ठहर गया