ढीठ
ढीठ




मेरे होने से अगर कोई गम है तुम्हें
तो कह दो ना
मैं ही चला जाता हूँ
क्या होगा ?
दो चार दिन रोऊंगा
या फिर ज़िन्दगी भर
पर जब कभी भी तेरी याद आएगी
तो हँस भी लूंगा।
तेरे दिए उन हसीं लम्हों को
याद कर के
समझा लूंगा खुद को
कि अब जरूरत नहीं उन्हें हमारी।
उन्हें कभी हमसे
मोहब्बत थी ही नहीं
कहा तो था उसने
पर हम ही कमबख्त
ढीठ बन बैठे।
जो खुद को तसल्ली दे कहते रहे
इंतज़ार रहेगा तुम्हारा।