बेटियों के फ़रिश्ते या कुछ और
बेटियों के फ़रिश्ते या कुछ और
किसे नज्र करूँ ये नज़्म अपनी,
के कौन मुझे चाहता है?
सभी को मैं ही चाहूँ
रिश्ते क़ायम रखने का ,बस यही एक आखरी रास्ता है।
मत पूछ किसी और से
के रास्ता क्या है?
वो ही पूछ लेंगे पलट कर तुमसे
के उनसे तेरा राब्ता क्या है?
अगर दोगे उन्हें जवाब अपना कह कर
हसेंगे तुमपर,उनसे राब्ता जानकर।
ख़ामोश ही रह ले अगर रहना ही है तो
क्या करना फ़िक्र जब सहना ही है तो,
कुछ लोग आयेंगे रास्ते में अकेला देखकर, हमसफर बनने
चल लेना साथ उनके मगर बिना कोई रिश्ता रखे।
कि हालात अब वैसे नही
के किसी पर भी भरोसा कर लिया जाये,
अकलमंदी इसी में ही है
के बिना देर किये वक़्त पर घर की ओर निकल लिया जाये।
दास्ताँ हमने भी खूब सुन रखे हैं तुम्हारी बहादुरी के,
पर ये अब वो दौर नहीं रहा
जहाँ दूसरों के भरोसे अपनों को सौंप दिया जाये,
यहाँ दूसरों की छोड़ो ,अपनों की कद्र नहीं है
तीन चार साल की बच्चियों के बलात्कारी उनके खुद के घर से निकले,
तो बताओ
क्या करें ऐसे जहाँ का रहनुमा बन के?
जहाँ की राह सीधे गर्त को भेजे,
इससे तो बेहतर हो के हम गुमनाम ही रहें,
ऐसे जहाँ से हमारे कोई ताल्लुकात ना रहे,
क्योंकि डरता हूँ अक्सर ये बात सोच कर,
कल को कोई बेटी हमसे ये सवाल ना पूछ ले,
के ये कैसे फ़रिश्ते होते है बाप ,अपनी बेटियों के?
जो खुद अपनी बेटियों के जिस्म से खेलते हैं?
गिर जाऊंगा उस दिन खुद ही खुद की नजरों में,
कैसे बताऊंगा कहानी उसे इंसानी जानवरों की ?
खुदा करे के वो वक़्त कभी न आये
जैसे गुजरता है हर वक़्त
वैसे ही ये बुरा वक़्त भी गुजर जाये ।