दौर
दौर
एक ऐसा भी जीवन का गुज़रा है दौर,
जब अकेलेपन के सिवाय मेरा साथी नहीं था कोई और,
वो वक़्त जब सिर्फ थी तन्हाई,
कुछ यादें थी और कुछ थी अपनों की रुसवाई,
जब न बाकी कोई सपना था,
न ज़िंदगी में बाकी कोई अपना था,
हां एक ऐसा भी जीवन का गुज़रा है मेरा दौर,
जब अकेलेपन के सिवाय मेरा साथी नहीं था कोई और,
आज भी कभी कभी उस वक़्त को याद कर कांप उठती है रूह,
लेकिन ईश्वर के हर फैसले के पीछे कुछ वजह भी होती है जरूर,
जब लोगों ने बहुत भटकाना था चाहा,
लेकिन मैंने खुद ही खुद को संभाला,
अपने सपने दोबारा खुद बुने,
अपने सच्चे रास्ते मैंने खुद चुने,
आज उस वक़्त को याद कर गर्व होता है खुद पर,
महसूस हुआ मुझे भी की मुसीबतों से लड़ सकती हूँ मैं भी
मजबूत होकर।
